#4 Awaaz Parwaaz

Our 4th podcast is short and yet powerful. Neha Mishra's Maa resonates with Mother's Day while Nikhil Narayan's take on staying in pursuit is a memory we could all relate to.

Maa by Neha Mishra
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माँ आज फिर अपनी गोदी मे सुला दे
थपकीया दे कर कोई लॉरी सुना दे|

थक कर जब शाम मे ऑफीस से आउ
तो ' सिर्फ़ पानी नहीं पीते'
ये कह कर पानी के साथ,
तेरे हाथों के बने वो पकोडे खिलादे|

रात में ज़बरदस्ती बैठा कर
सिर में मेरे
पेराशूट वाली गरम तेल की
वो चम्पी दुबारा से कर दे|

माँ आज फिर अपनी गोदी मे सुला दे
थपकीया दे कर कोई लॉरी सुना दे|

मैं जब पिज़्ज़ा खा कर आउ
तो ज़बरदस्ती सोने से पहले
तेरे हाथो से बनी
वो एक रोटी फिर से खिला दे|

सर्दी हो जाए
तो दवाई की जगह
तेरा वो खास नुस्ख़ा
वो काढ़ा दुबारा पीला दे|

माँ आज फिर अपनी गोदी मे सुला दे
थपकीया दे कर कोई लॉरी सुना दे|

'मुझे ये नहीं खाना है'
सुनते ही,
एक बार फिर से
मेरी फर्माईश का
कुछ खाना बना दे|

'बहादुर बच्चे रोते नहीं',
ये कह कर
एक बार फिर मेरे
आँसुओं को गिरने से
पहले ही पोछ दे|

माँ, अपनी आँचल के पीछे
मुझे एक बार फिर
इस दुनिया से छुपा ले
नज़र ना लगे कह कर
एक बार फिर वो कला टीका लगा दे|

माँ आज फिर अपनी गोदी मे सुला दे
थपकीया दे कर कोई लॉरी सुना दे|

अबकी बार जो ठोकर खाऊँ
तो पहले की तरह
चोट सहला कर
'सब ठीक हो जाएगा'
ये कह कर
मन को फिर से शांत करा दे|

एक बार फिर वो स्कूल की घंटी बजा दो
छुट्टी हो गयी है जवानी से
ये कह कर
कोई मुझे मेरे घर का
वो बचपन दिला दो|

मैं थक गयी हूँ
कि माँ आज फिर अपनी गोदी में सुला दे
थपकीया दे कर कोई लॉरी सुना दे|



Chalta Chal by Nikhil Narayan
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आया था जब चलने से अनजान था 
जाऊंगा जब चलना भूल जाऊंगा  

आने से पहले तेरे ख़्वाबों  में था 
जाते जाते तेरी यादे बन जाऊंगा 

सफर कैसा है  ये अनोखा 
अंत सबका है एक जैसा 

छोटी छोटी बाते बड़ी लम्बी चल गयी 
बड़ी बड़ी बाते युही दब गयी 

चलना है मुझे चलता ही जाऊंगा मैं 
जानता हूँ गिरूंगा, पर गिर कर खुद ही उठूंगा 

कारवाँ  से में मिला कभी 
कारवाँ  मुझसे मिला कभी 
 
नाह जाने कितने मिले 
नाह जाने कितने छूटे 

राहों  के राह गिर बन 
ना जाने कहाँ  कहाँ  रुके 

रुकूंगा नहीं  मैं अब कभी 
जान गया हूँ क्यूंकि मैं 

आया था जब चलने से अनजान था 
जाऊंगा जब चलना भूल जाऊंगा



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